DURVASA RISHI ASHRAM FARRUKHABAD
सफलता पर अहंकार और असफलता पर निराशा से बचें
श्रीकृष्ण का देव पुरुष होना निराला है और श्रीराम का राजपुरुष होना अद्भुत है। लोकतंत्र के सबसे बड़े अनुष्ठान की पूर्णता पर फलश्रुति बाहर आ गई है, अब राजपुरुष का चयन होगा। तुलसीदास ने सही लिखा है, ‘यह कौतूहल जानइ सोई। जा पर कृपा राम कै होई’। ‘इस लीला को वही जान सका है, जिस पर प्रभु श्रीराम की कृपा हो’।
चुनाव के परिणाम सामने आने के बाद कई सीखें मिली हैं। अब सबके अपने-अपने दावे हैं, अपनी-अपनी घोषणाएं हैं। पिछला काल-खंड मनुष्य-मनोविज्ञान के अध्ययन का अद्भुत समय था। भारत की जनता निराली है, ये हवा का रुख नहीं देखती, ये हवा में उड़ता हुआ हेलिकॉप्टर देखती है। ये कर्णधारों के सामंती वैभव के लुभावन में आ जाती है।
बहुत सारे लोग अपनी सफलता पर अहंकार और ओढ़ लेंगे, और जो असफल हुए वो अवसाद में डूब जाएंगे। लेकिन याद रखें कुछ भी स्थाई नहीं होता। भारत के रज-रज, कण-कण में धर्म और अध्यात्म बसा है। ऋषि-मुिनयों की आवाज आज भी गूंज रही है कि यदि सफल हुए हो, तो अहंकार मत पाल लेना और असफल हुए हो तो उदास मत होना। इन दोनों के लिए ही एक पंक्ति है, ‘होइहि सोइ जो राम रचि राखा’।